Friday, May 21, 2010

तवांग यात्रा (३) तवांग वार मेमोरिअल (tawang war memorial)

तवांग मे जैसे ही प्रवेश करते है तो हर तरफ भारतीय सेना के जवान ,सेना की कारें,ट्रक,वगैरा बहुत दिखाई देते है क्यूंकि तवांग चीन और भारत के बार्डर का डिस्ट्रिक्ट है। १९६२ मे जब चीन ने (sino-india war) भारत पर आक्रमण किया था और चीनी सैनिक भारत मे प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे उस समय तवांग मे तैनात भारतीय सैनिकों ने अपूर्व जौहर और हिम्मत से चीनी सैनिकों का सामना किया था और उन्हें भारत मे प्रवेश करने से रोका था।इस लड़ाई मे २४२० भारतीय सेना के जवान शहीद हो गए थे और इन्ही शहीदों की याद मे ये memorial बनाया गया है। ये memorial तवांग शहर से १ कि.मी.की दूरी पर है और यहां तक जाने मे रास्ते मे दोनों तरफ सेना के शिविर और सड़क के दोनों ओर बहुत सारे बोर्ड ,झंडे और मूर्तियाँ अलग-अलग रेजिमेंट के बहादुर सैनिकों की दिखाई देती है। और इस १ कि.मी.के रास्ते मे सेना के जवान आते-जाते हुए भी दिखाई देते है।
इस memorial का निर्माण १५ अगस्त १९९८ मे शुरू हुआ था और २ नवम्बर १९९९ को इसे उन २४२० शहीदों को समर्पित किया गया जिन्होंने चीनी सैनिकों से लड़ते हुए अपनी जान अपने देश पर कुर्बान कर दी थी। इस memorial की ख़ास बात ये है कि ये तवांग के तकरीबन पूरे शहर से दिखाई देता है।
जैसे ही इस war memorial के गेट से प्रवेश करते है तो दाहिनी ओर एक बोफोर्स तोप दिखाई पड़ती है और इसी के पास कार पार्किंग भी है। यहां से थोडा आगे बढ़ने पर भगवान बुद्ध की सफ़ेद मूर्ति बनी हुई है। यहां पर जैसे ही कार से उतरते है तो सामने सीढियां दिखाई देती है और इन सीढ़ियों के प्रवेश द्वार पर खड़े होकर देखने पर यहां बना ४० फीट ऊँचा स्तूप दिखाई देता है ।

इस
war memorial मे बुद्ध धर्म की झलक साफ़ दिखाई पड़ती है -प्रवेश द्वार और ऊपर भी । सीढ़ियों से ऊपर जाने पर धर्म चक्र (monestary जैसे )दिखाई पड़ते है । यहां स्तूप के चारों ओर दीवारों पर उस युद्ध मे शहीद हुए सभी जवानों के नाम उनकी रेजिमेंट के साथ लिखे हुए है ।
इस war memorial मे ऊपर की तरफ भारतीय झंडे के साथ साथ सभी रेजिमेंट के झंडे लगे हुए है । रोज सुबह सूर्योदय के साथ इन्हें फहराया जाता है । और हर रोज शाम ५ बजे जब सूरज ढलने लगता है यानी सूर्यास्त के समय इन सभी झंडों को बिगुल की धुन के साथ उतारा जाता है और इसे देखना भी अपने आप मे एक अनुभव है।इसका विडियो you tube पर लगाया हुआ है ।


इस स्मारक के चारों पत्थर लगे हुए है जिनपर शहीदों के लिए लिखा हुआ है कि किस तरह उन्होंने अपनी जान की परवाह ना करते हुए देश के प्रति अपना फर्ज निभाया था।
थोडा और आगे बढ़ने पर एक कमरे मे सूबेदार जोगिन्दर सिंह जी की प्रतिमा बनी है जिसके नीचे एक रीथ रक्खा हुआ है और साथ ही वहां पर राइफल्स और शहीद हुए जवानों की अस्थियाँ भी रक्खी हुई है। दीवार पर मेड़ेल्स लगे हुए है और इस लड़ाई के बारे मे लिखा हुआ है। जोगिन्दर सिंह जी की मूर्ति के नीचे किस बहादुरी और अदम्य साहस के साथ उन्होंने चीनी सेना से लड़ाई की लिखा हुआ है और जिसे पढ़कर सिर अपने आप उनकी शान मे झुक जाता है।यहां से आगे बढ़ने पर एक और कमरा पड़ता है जिसमे उस समय इस्तेमाल की गयी राइफल्स और गोलियां रक्खी है। और यहां पर दीवारों मे उस समय लड़ाई की फोटो लगी हुई है। साथ ही एक नक्शा भी लगा हुआ है। जिसके माध्यम से उस समय जैसे-जैसे लड़ाई आगे बढ़ी थी उसे दर्शाया गया है। जिसे पढ़कर और देख कर अपने देश के लिए जान कुबान करने वाले शहीदों पर नाज होता है ।

war memorial से बाहर आने पर बायीं ओर गिफ्ट शॉप पड़ती है जहाँ से हम लोगों ने इस war memorial के सोविनियर खरीदे। और वापिस गेस्ट हाउस आ गए।

Friday, May 14, 2010

तवांग यात्रा (२)(tawang)

चलिए अपनी तवांग यात्रा को आगे बढ़ाते है । तकरीबन साढ़े बारह बजे हम लोग तवांग पहुँच गए । जब हेलिकॉप्टर तवांग के हैलीपैड पर उतरा और हम लोग बाहर निकलने लगे तो कैप्टेन ने हम लोगों को हिदायत दी कि चूँकि आप लोग पहली बार तवांग आये है इसलिए एक दम से बहुत ज्यादा घूमने या ऊपर-नीचे पहाड़ों पर मत जाइएगा।क्यूंकि तवांग उंचाई पर है और यहां अक्सर ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे सांस की तकलीफ हो सकती है।तो इसलिए थोडा संभल कर रहिएगा। कैप्टेन को उनकी इस हिदायत के लिए धन्यवाद कह कर हम लोग गेस्ट हाउस की तरफ चल पड़े। हालंकि वहां सड़क ठीक -ठाक है और वहां के लोगों का कहना है कि चूँकि वहां बर्फ बहुत गिरती है इसलिए सड़क खराब होती रहती है

खैर गेस्ट हाउस पहुंचकर चाय पी और फिर थोडा देर आराम करके घूमने का प्रोग्राम बनाया गया। और सबसे पहले वहां की ganden namgyal lhatse जिसे तवांग monestary भी कहते है उस को देखने का तय हुआ । इस monestary तक जाने के २ रास्ते है ।गाडी से जाने पर एक पूरे पहाड़ का चक्कर लगाकर वहां पहुँचते है । और दूसरा रास्ता सीढ़ी से जाने का है। खैर हम लोग कार से गए और बस ५-७ मिनट की ड्राइव के बाद हम लोग monestary मे थे।पर लौटने मे सीढ़ी से लौटे ।

इस
सारे रास्ते मे लामा भी दिखाई देते है। लामा लोद्रो ग्याम्त्सो ( lama lodroe gyamtso) ने १६८१ मे इस monestary की स्थापना की थी।1९९७ मे दोबारा इस monestary का निर्माण हुआ और इसे जनता को समर्पित किया गया

NDTV ने इस monestary को spiritual wonder of india कहा है।ये monestary काफी बड़ी है और ये छठें लामा Tsangyang Gyatso की जन्मस्थली होने के कारण काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। ।इसमें लामा लोगों के लिए घर,स्कूल ,लाइब्ररी,है और एक museum भी है जो काफी अच्छा है। और जिससे पुराने इतिहास का पता चलता है।तवांग monestary ऊंचाई पर स्थित होने के कारण वहां से तवांग शहर का और तवांग शहर से इस monestary का नजारा काफी सुन्दर दिखाई देता है। (ये छोटे लामा अचानक कहीं से गए थे। )
monestary मे पहुँचते ही वहां व्याप्त शांति से मन प्रसन्न हो गया था। monestary काफी खाली-खाली लग रही थी क्यूंकि एक तो दोपहर का समय था और दूसरे यहां पर लामा लोगों के लिए जो स्कूल था वो बंद हो चुका था और सभी लामा अपने-अपने घरों मे थे। हाँ हम लोगों की गाडी रुकने कुछ लामा जिज्ञासा वश वहां जरुर आ गए थे।

खैर वहां के २ लामा हम लोगों को monestary दिखाने के लिए हम लोगों के साथ चले।( ये लामा हिंदी के साथ- साथ इंग्लिश भी बहुत अच्छी बोल रहे थे)कुछ १०-१२ सीढियां उतर जब मुख्य प्रांगन मे पहुंचे तो चारों ओर नजर दौडाने पर monestary के सभी भवन और इमारतें सफ़ेद ,नीले,लाल और भूरे रंग मे थी और सभी मे सुन्दर और कलर फुल चित्रकारी दिखाई दी ।और बायीं ओर पुराना प्रार्थना भवन दिखाई देता है जो अब खाली रहता है और दाहिनी ओर दिए जलाने का भवन दिखाई देता है। (house of offering butter lamp)


मुख्य
ईमारत तीन मंजिला है जिसमे सबसे नीचे की मंजिल पर मुख्य प्रार्थना भवन जिसे दुखांग (Dukhang) कहते है।और सबसे ऊपर की मंजिल १४वें दलाई लामा के रहने के लिए है। वो जब भी तवांग जाते है तो इसी monestary मे ठहरते है। (सबसे ऊपर वाली फोटो )

हम लोग प्रार्थना भवन मे पहुंचे तो मुख्य द्वार और उसके आस-पास की चित्रकारी देखने लायक थी । इस प्रार्थना भवन मे कई चौकोर खम्बे है और इन खम्बों मे और भवन के अन्दर भी सुन्दर चित्रकारी की हुई है। भवन की दीवारों पार भगवान बुद्ध के १०० रूपों को दिखाया गया है।
साथ-साथ यहां पर बौद्ध धर्म के अन्य देवी-देवता के साथ चंगेज खान को भी पेंटिंग के जरिये दिखाया गया है।
यहां पर हजार हाथों वाली देवी guanyin की प्रतिमा भी देखी। अवलोकितेश्वर यानी बुद्धा को इनका ही अवतार मानते है।
भवन
के प्रमुख द्वार से प्रवेश करने पर सामने सुनहरे रंग की भगवान बुद्ध की प्रतिमा लाल रंग के वस्त्र मे नजर आई । और बुद्ध की प्रतिमा के ठीक नीचे १४वें दलाई लामा की फोटो नजर आई।



इसके नीचे एक बहुत बड़ा घी का लैम्प दिखा जो सारे समय जलता रहता है।monestary मे बुद्ध की प्रतिमा पर सफ़ेद सिल्की कपडा जिसपर बौद्ध धर्म के ८ शुभ सिम्बल बने होते है और बौद्ध धर्म का मन्त्र लिखा होता है उसे चढ़ाया जाता है।और चूँकि प्रतिमा काफी ऊँची है इसलिए इसे रोल करके ऊपर भगवान बुद्ध की तरफ फेंका जाता है।

यहां पर monks यानी लामा लोगों के रहने के लिए घर बने है जहाँ एक घर मे छोटे और बड़े लामा एक परिवार की तरह रहते है ।इनके घर मे जाने के लिए लकड़ी की सीढ़ी होती है । वैसे घर मे खाना बनाने के लिए गैस और कुकर वगैरा होते है। जरुरत का सभी सामान होता है। पर बाकी सामान कम से कम ही होता है।और हर घर मे एक बुखारी होती है जिससे कमरे को गरम रक्खा जाता है।यहां के सबसे वृद्ध लामा से भी हम लोग मिले।
और फिर यहां पर बने museum को देखने भी गए। museum को घूमना और देखना भी काफी रोचक रहा। जहाँ नीचे की मंजिल पर वस्त्र ,वाध यन्त्र ,ब्रौकेड्स,gyetongpa सुनहरी पांडुलिपि ,बर्तन और अनेकों चीजों के साथ-साथ १००० साल पुराना हाथी दांत (tusk) भी देखा। :)


और
ऊपर की मंजिल पर बड़े-बड़े बर्तन जिनमे कभी खाना बना करता था और चाय बनाने का एक ख़ास तरह का बर्तन वगैरा भी देखे। जिसे आज भी तवांग मे चाय बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है ।
स्कूल और लाइब्ररी नहीं देख पाए क्यूंकि स्कूल बंद हो चुका था। और हाँ इस monestary मे कैमरे के अलग-अलग चार्ज लगते है जैसे still camera का २० रुपया ,video camera के १०० रूपये और movie camera का ५०० रूपये लगता है।

खैर
अगली बार जब जायेंगे तब देखेंगे।आज की यात्रा अब यही ख़त्म कर रहे है। आप लोग भी थक गए होंगे। :)